शरद ऋतु के दिन Poem by neetta porwal

शरद ऋतु के दिन

हे परमात्मा!
यह वह समय है
जब चरम पर है ताप

तो पड़ने दो धूप-घड़ी पर
अपनी परछाईं
और खुला छोड़ दो हवाओं को
मैदानों में

प्रण करो
आख़िरी फल को भी
परिपूर्ण कर देने का

प्रण करो
विपरीत दिनों को
दो और दिन देने का,
पक जाने के लिए
दबाब बनाओ फलों पर
शराब में मिठास लाने के लिए
एक आख़िरी कोशिश और करो

जिनके पास घर नही है
वे अब घर बनाएँगे क्या ही
जो एकाकी हैं अभी तक
आगे भी एकाकी रहेंगे वे,
वे जागते रहेंगे, पढ़ेंगे, लम्बे पत्र लिखेंगे
और घूमेंगे नीचे और ऊपर, बेचैनी से भरे,
जब तक कि उड़ती रहेंगी पत्तियां

अँग्रेज़ी से अनुवाद -- नीता पोरवाल

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