लोग अपने गम में क्यों रोते है,
जब दूसरे के रोने में हँसते है ।
गैर का दुख-दर्द न लगता अपना,
देखते रहते अपनी खुशी का सपना,
तनिक भी न दीखते मलीन चेहरे,
गाने के मधुर स्वर चलते रहते हैं।
बातें जहाँ होती रहती गर्मागर्म,
आवाज के रुप भी न करते शर्म,
बहसों के रुप भी बदलते रहते,
दुखी दिल को भी न समझते हैं।
जब अपना दुख सिर आ जाता,
धुन-धुन कर सिर अपना पछताता,
लाख समझाने पर भी न बँधता धैर्य,
भगवान को गाली'नवीन' सुनाते हैं।
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