लोग अपने गम में क्यों रोते है, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

लोग अपने गम में क्यों रोते है,

लोग अपने गम में क्यों रोते है,
जब दूसरे के रोने में हँसते है ।

गैर का दुख-दर्द न लगता अपना,
देखते रहते अपनी खुशी का सपना,
तनिक भी न दीखते मलीन चेहरे,
गाने के मधुर स्वर चलते रहते हैं।

बातें जहाँ होती रहती गर्मागर्म,
आवाज के रुप भी न करते शर्म,
बहसों के रुप भी बदलते रहते,
दुखी दिल को भी न समझते हैं।

जब अपना दुख सिर आ जाता,
धुन-धुन कर सिर अपना पछताता,
लाख समझाने पर भी न बँधता धैर्य,
भगवान को गाली'नवीन' सुनाते हैं।

Monday, August 20, 2018
Topic(s) of this poem: love
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