शब्दों का चलता रहता कपटजाल, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

शब्दों का चलता रहता कपटजाल,

शब्दों का चलता रहता कपटजाल,
कोई कभी भी न हो सकता निहाल,
हँसते सँग जो, वे भी न रहते अपने,
सभी खोये रहते अपने-अपने सपने।

Wednesday, August 22, 2018
Topic(s) of this poem: love
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