भयभीत सांसें Poem by Dr. Yogesh Sharma

भयभीत सांसें

ये क्या डरावना मंज़र हो गया?
गले लगाने बढ़ा, पर वो भाग गया।

चीनी मर्ज के साये ने सबको डराके,
कातिल मार कर भी दिल में बैठ गया।

लुटकर हमने अपने ख्वाब सजाये थे,
ज़ालिम ज़िंदगी का सफर खत्म कर गया।

कमजोरी रही होगी अपने पैगामे मुहब्बत में,
जिस दिन आया उसी दिन कत्ल कर गया।

आने वाली पीढियों को सुनायेंगे दास्ताऐं,
जो बनता था उस्ताद उसी का कत्ल हो गया।

हर शाम पूंछ्ती हैं हिसाब दर्दे दिलों के,
वो शक्स सुबह मिलेगा या अस्त हो गया।

अंज़ाम तो भुगतना होगा, मुफ्त की रोटी में,
जिस दिन मुंह में हराम लगा, कुफ्र हो गया।

भयभीत सांसें
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