महेकता गुलाब
Sunday, May 9,2021
5: 43 AM
तुम हो महेकता गुलाब
देखते ही बनता है रुआब
कुदरत का असली है नजारा
इंसान क्या करता बेचारा।
नदी के झरने जैसी तेरी खामोशी
बात करने के लिए लगती मुझे नामोशी
पर मानता नहीं दिल तुझे बात किए
आँखे भी रहती है शर्माए हुए।
जब बरसता है आस्मा से पानी
मौसम भी बन जाता है रूमानी
ना करना कुझ से कोई बेईमानी
गिनी जाएगी तेरी नाफरमानी।
मिली है जिंदगी तो जीके भी देखो
अखियों से मिलाके अखियों में ढूंढो
सारा जहारा एक ही पल में
खुशियों में बदल जाएगा कल का आज में।
जीवन का यही तो है फलसफा
पेट साफा तो हर रोगा है दफा
प्रेम रोग यूँही मिट ता नहीं
सब को मंझिल यूंहो प्राप्त होती नहीं
जीवन जीना प्रयाप्त नहीं
सभी मेरे आप्तजन तो नहीं
मिलना है मुख्य मेरे मन की मंझिल
ना हो जाए सपने बोझिल।
गुलाब का फूल नहीं
उसकी खुश्बू ही सही
मुझे मंझिल का एहसास मिले यही
में धन्य हो जाऊंगा मुस्कुराकर मन ही
डॉ हसमुख मेहता
डॉ.लिट
साभार: भारतीय नाट्यशाला
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