चलो उस देश में जहाँ कोई भेद भाव नहीं Poem by M. Asim Nehal

चलो उस देश में जहाँ कोई भेद भाव नहीं

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जहां टूटी दीवारें बोलने को आतुर हैं
और एक नदी पहाड़ की चोटी से एक कहानी ले जाती है।

जहां मवेशियों को हरी घास पर मुफ्त दावत खाने को मिलती है
पंछी को खुली आसमानी हवा और ऊचाई मिलती है

जहाँ पेड़ भी बांसुरी खुद बजाते हैं और बादलों को संगीत सुनते हैं
जहाँ मस्त होकर लोग नाचते और गाते हैं

जहां धूप और छाँव लुका-छिपी खेलती है
बारिश की बूँदें इन्द्रधनुष बिखेरती हैं

जहाँ आनंद की बेला पर इंसान सुकून पता है
अपने ग़मों को भूल तरो ताज़ा हो जाता है....

चलो उस देश में जहाँ कोई भेद भाव नहीं
कोई जाट पात और ऊँच नीच नहीं

Thursday, September 30, 2021
Topic(s) of this poem: nature love,country,human life
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