घुँघरू Poem by Ajit Pal Singh Daia

घुँघरू

वह जब चलती है न चाँद
तो उसके पायजेब के घुँघरू
कुछ रुनझुन नहीं करते हैं
बल्कि मेरी नज़्में कहते हैं

उसे नहीं मालूम
घुँघरुओं में मैंने
कुछ लफ़्ज़ भरवा दिए थे
सुनार से।

Friday, May 17, 2019
Topic(s) of this poem: love,love and dreams,love and life
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