हर पिंजरा इक बंदीगृह है Poem by Pushpa P Parjiea

हर पिंजरा इक बंदीगृह है

Rating: 5.0

]कभी जाती गौरेयाके घर तो, कभीबुलाती थीं अन्यसखियाँ
मन भरमस्ती करती फिर थक कर सो जाया करती थी
खुशियों के संग हंसते रमतेख़ुशी से जीवन गुजर रहा था
पर भाग्य ने खाया ऐसा पलटा,
न वो पहाड़ों का मंजररहा न वो मेरा प्यारा घर ही रहा.
सिर्फ बदलती नहीं इंसानों की दुनिया
हम पंखी भी किस्मत के मारे हैं क्यूंकि
जब पड़ती किसी शिकारी की नजर
या मारे जाते या पिंजरे में बंद किये जाते हैं
इक दिन इक राजा आया
ले गया वो बंदी बनाकर मुझे
कहा अनुचरों से लाओ सोने का पिंजरा
रखो उसमें इस प्यारी सी चिड़िया को
सोने का सुंदर पिंजरा था पर था तो आखिर पिंजरा ही
इस हालत पर कितना मेरा दिल था रोया
सोने का पिंजरा मेरे किस काम का? एइसा सोचा था
मैं तो मस्त गगन में उड़ती तब
भोर सुनहरी शाम सुनहरी और सुनहरी सपने थे
वो खुला गगन ही मेरा सोना था
सोने के बर्तन में राजा देता उसको दाना पानी था
चिड़िया को पर न भाता था
सहमी सहमी रहती हर पल
कुछ भी रास नहीं आता था
आज़ाद परिंदों का कलरव वह
दूर से सुनती रहती थी
तब तब आज़ादी उसे अपनी याद आती थी
खारे आंसू से उसके तब नयन कटोरे भर आते थे
ऐसी ही दीन दशा में रहते गुज़र गए पिंजरे में सालों
एक दिन राजा उठा सुबह को सुनकर चिड़िया के पास कुछ पक्षियों का कलरव
देखा चिडया गिरी पड़ी थी उड़ गए थे प्राण पखेरू उसके
कहते थे मानो राजा से हर पक्षी को आज़ादी देना
किसी को तुम यह सजा न देना
चाहे कैसा भी पिंजरा हो है तो आखिर पिंजरा ही
पिंजरे का जीवन सजा है भारी
क्योंकि हर पिंजरा इक बंदीगृह है

Sunday, June 16, 2019
Topic(s) of this poem: abc
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
ABC
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 17 June 2019

बहुत ही भावपूर्ण व प्रतीकात्मक कविता है जिसके हर शब्द में जीवन का सनातन सत्य उद्घाटित होता है. सच में देखा जाए तो स्वाधीनता और स्वतंत्रता से बढ़ कर जीवन में कुछ नहीं है. आपने सही कहा कि पिंजरा चाहे सोने या चांदी का ही क्यों न हो है तो पिंजरा ही. बहुत उद्देश्यपूर्ण कविता. धन्यवाद बहन पुष्पा जी.

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Pushpa P Parjiea 18 June 2019

Bahut bahut dhanywad bhai, bandhan insa ko udasin bana deta hai or azadi unche aasmaan tak pahuchane ki shakti rahti hai.

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