एक जीव क्षेत्रज्ञ, द्रष्टा, श्रोता, घ्राता, रसयिता, विज्ञानात्मा है। Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

एक जीव क्षेत्रज्ञ, द्रष्टा, श्रोता, घ्राता, रसयिता, विज्ञानात्मा है।

एक जीव क्षेत्रज्ञ, द्रष्टा, श्रोता, घ्राता, रसयिता, विज्ञानात्मा है।
दूसरा आत्मा का आत्मा, सव^ज्ञ, सव^शक्ति मान सवा^न्तरात्मा है।।
जो देखता, सुनता, बोलता, स्वाद -आस्वादन करता है।
वह यह द्रष्टा, श्रोता, विज्ञानात्मात्मक जीव सुख दुख समाकुल रहता है।।

Thursday, July 11, 2019
Topic(s) of this poem: love
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