जब लिखना भा गया Poem by royal khatana

जब लिखना भा गया

Rating: 4.5

लिखते लिखते इतिहास लिखूंगा!
दर्द- ए- दवात कि स्याही से वो काली रात लिखूंगा
इस सर्दी कि धुप में एक नया साँस लिखूंगा
बीते सालों कि राज कि बात लिखूंगा
पानी कि कलम से हिंदुस्तान का नया पुराण लिखूंगा
कोयल कि आवाज से हर माता का प्यार लिखूंगा
झूठ के अंधकार में रोशनी कि सच्चाई लिखूंगा

लिखते लिखते इतिहास लिखूंगा! !

समुंद्र कि एक लहर से रॉयल खटाना के जज्बात लिखूंगा!
चाँद कि चांदनी से चन्दन का एहसास लिखूंगा
एक गरीब मजबुर कि मदद से भारत का मजदुर लिखूंगा!
खिलाडी के खेल से एक नए खेल का निर्माण लिखूंगा
रजाई की रुई से हर सर्दी का अंजाम लिखूंगा
रॉयल खटाना की थकान से एक नया रामबाण लिखूंगा

लिखते लिखते इतिहास लिखूंगा! !

COMMENTS OF THE POEM
Lyn Paul 06 January 2014

Dear Royal I would have read your words yet sadly I understand no other than the English language. Yet how much more glamorous your writing is compared to our English language. Thank you and I wish you well. Welcome to PH. Best Wishes

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success