मेरे लिए दुआ करे Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मेरे लिए दुआ करे

मेरे लिए दुआ करे
सोमवार, १९ अक्टूबर २०२०

में तो चला जाऊंगा
वापस भी नहीं आऊंगा
पर पीछे क्या छोड़ जाऊंगा?
जब में मर जाऊंगा!

सब की तरह में भी चिंताग्रस्त था
बार-बार त्रस्त हो जाता था
क्या जिंदगी का मकसद यही था?
क्या मैंने बदनामी लेकर जाना था?

दिल ने बार-बार कोसा
पर मुझे था भरोसा
मैंने कईओ को था परोसा
नहीं आने दिआ था उनको ओछा।

मैंने नए आगंतुक को भी आवकारा
किसी की आरजू को नहीं नकारा
मेरा अभिगम था सकारात्मक
नहीं होता था में आक्रामक।

मुझे कोई नहीं थी परेशानी
पर होती थी जरूर हैरानी
मानवतार का क्या होना चाहिए मकसद?
क्या हम नहीं है प्रभु के कासद?

जो भी हो मेरे पीछे होगी ढेर सारी शुभेच्छाए
उन सब की पूरी की हुई इच्छाए
सब का आशीर्वाद और दुआए
बस यह सब ही मेरे काम आए।

जब बंध हो जाएगी मेरी आँखे
मेरे चेहरे को सब शांति से देखे से देखे
कभी ना आंसू बहाए और हैरानी करे
संसार में सब को जाना है इसलिए मेरे लिए दुआ करे।

डॉ.जाड़िआ हसमुख

मेरे लिए दुआ करे
Sunday, October 18, 2020
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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