सद्ज्ञान हमें दो प्रभो! Poem by Sushil Kumar

सद्ज्ञान हमें दो प्रभो!

हम सत के पथ को अपनाएँ, ऐसा सद्ज्ञान हमें दो प्रभो।
ऐसा सद्ज्ञान हमें दो प्रभो......

छाया चहु-ओर अँधेरा है, हमको संशय ने घेरा है।
पल भर को सूर्य नहीं दिखता, कहने को हुआ सबेरा है।
कहने को हुआ सबेरा है................................
तम में भी कदम बढ़ा पायें, ऐसा अनुमान हमें दो प्रभो।
ऐसा अनुमान हमें दो प्रभो............................

कोई भी निबल न रहे जग में, गिरता न मिले कोई मग में।
कांटे भी चुभे तो पुष्प लगें, वो दृढ़ता दो प्रभो हर पग में।
वो दृढ़ता दो प्रभो हर पग में...........................
सत से संसार झुका पायें, ऐसा वरदान हमें दो प्रभो।
ऐसा वरदान हमें दो प्रभो.................................

हम भारत माँ की शान बनें, गौरव-गाथा की खान बनें।
कितनी ही विषम परिस्थिति हो, कर्तव्यों की चट्टान बनें।
कर्तव्यों की चट्टान बनें......................................
हर युग में छाप छोड़ जाएँ, ऐसी पहचान हमें दो प्रभो।
ऐसी पहचान हमें दो प्रभो....................................

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