महबूब समझते होंगे Poem by Mithilesh Dixit

महबूब समझते होंगे

चाँद मे दाग है तू बेदाग़ है
लोग तुझे चाँद समझते होंगे,
मेरी ग़ज़लों से इतनी मिलती है तस्वीर तेरी
लोग तुझे मेरा महबूब समझते होंगे.
हर लब्ज़ में तुझे ही पाता हूँ
हर पंक्ति में तुझे ही चाहता हूँ
लोग इसे खूब समझते होंगे,
क्या करुँ तू जो बेवफा हो गयी
फिर भी मैं तुझे ही चाँद में ही पाता हूँ
लोग इसे मेरा उसूल समझते होंगे.
तेरे आने से एक ख़ुश्बू होती है हवाओं में
हर भौरें मंडराने लगते है
लोग तुझे फूल समझते होंगे.
दिल तो तुम्हारा है मैं क्यों लड़ूँ
मैंने चाहा तो तुझे पर ना मिल सकी
लोग इसे मेरा भूल समझते होंगे.
सूरज ढलने पर तुम्हारा छत पर ना आना
मुझे देख कर वो कंगन ना घूमना
लोग तुझे मुझसे दूर समझते होंगे.
मैं तुम्हारे दिल की ख्वाहिस को समझता हूँ
तू किसी और के दिल को सजाती है
लोग इसे ज़रूर समझते होंगे.

Sunday, April 5, 2015
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success