तकदिर Poem by Sursen Gaunle Anyol

तकदिर

दिल में चाहत होने से क्या
चल्ना तो तकदिर के साथ् पड्ता है
दौलत सौरत जाबानी क्या
जल्ना तोः लकडी के साथ् पड्ता है
हर कदम पे मर्जी इन्सान कि चल्ती नही
फिर भी हर बार मेरा कहेना पड्ता है
फूल सी है जिन्दगि रंग भरना है जग में
फिर भी इन्सान हर कदम पे कांटे बो ता है

(sg anyol) (27/7/2014)

Thursday, June 11, 2015
Topic(s) of this poem: myelodysplastic syndrome
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Sursen Gaunle Anyol

Sursen Gaunle Anyol

Pokhara, Nepal
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