सौर्मंडल का राजा Poem by M. Asim Nehal

सौर्मंडल का राजा

Rating: 5.0

सौर्मंडल का राजा सूरज और तुम उसकी रानी हो
वो दिन में है राज चलता और रात को बनाती सुहानी तुम

कैसे देखो चोरी चुप्पे तुम रातों को आ जाती हो
चांदनी बिखेर कर तुम सबका मन हर्षाती हो

सूरज तुम्हे पकड़ न पाए रूप सदा बदलती हो
छोटे से बढ़ते बढ़ते फिर धीरे से घाट जाती हो

एक दिन तो न जाने तुम जा कर कहाँ छुप जाती हो
हर रूपतुम्हारा सुहाना लगता हर्र रंग मेंछा जाती हो

रातों को चांदी करती हो पेड़ो को सजाती हो
बादल के संग खेला करती गीतों मेंसमाती हो

जुगनू में चमक भर कर तुम परियों संग बतियाती हो
जब चौदा दिन की होती हो लहरों को मचलती हो

आँखों से तुम दिल मेंउतरकर साँसों को धडकती हो
अँधेरे में निर्भय रहने का मुझको पाठ पढाती हो

Saturday, August 22, 2015
Topic(s) of this poem: moon,nature,sun
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 19 October 2015

सूरज के साथ रात, घटते बढ़ते चाँद और चाँदनी का इतना सुमधुर चित्रण आपने इस कविता में किया है कि दिल से अपने आप वाह! वाह! निकल जाता है. आप इतनी अच्छी हिंदी लिखते हैं. धन्यवाद,

2 0 Reply
Akhtar Jawad 14 October 2015

A beautiful description of moon....................................10

3 0 Reply
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M. Asim Nehal

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