एक ग़ज़ल- - -
तअल्लुक और उमीदों के शजर हम काट आय है।
हज़ारों मील का लम्बा सफ़र हम काट आये है।
ज़रा देखे मुहब्बत कब तलक पलकों पे रखती है-
रिवायत के सभी ज़ेरों ज़बर हम काट आये है।
ये साहिल से कहो अब तो हमें आगोश में ले ले-
सफ़र में जो मुख़ालिफ़ थे, भँवर, हम काट आये है।
बरहना सर, सुलगती धूप, और पावों में छाले थे-
सफ़र दुश्वार था जानम, मगर हम काट आये है।
न रोकेगा कोई नन्हें परिन्दों को उड़ानों से-
अमीरे शह्र के मजबूत पर हम काट आये है।
सुना है आज उस बंजर ज़मीं पर फूल खिलते है-
तुम्हारे साथ जिस पर रात भर हम काट आये है।
ख्याल आता है जब हमको तो आँखें भीग जाती है-
हिलाल' उसकी तमन्नाओं के पर हम काट आये है।
hilal chandausvi
(chandranshu tiwari)
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