जब तुम आये थे 10.5.16—7.20 AM
जब तुम आये थे मचलते हुए मेरी बाँहों में
कितनी ख़ुशी बिखरी थी न तेरी अदाओं में
तुम चाँद बन कर आ बैठे थे मेरे आगोश में
हम भी तुम हुए तुम तुम न रहे न रहे होश में
कितने वायदे कर डाले कितने निरभार थे
अपने संवाद बने एक दूजे के बफादार थे
कितने फूल खिले कितने खिदमतकार थे
रंगों की दुनिया और बने हम चित्रकार थे
न कोई किस्सा न कोई कहानी न मनमानी
आत्मा का समर्पण न फिसले कोई जुबानी
तुम मेरी है मैं तेरा हूँ और खुशबू थी सुहानी
वक्त भी पिघलता रहा जैसे बर्फ और पानी
निकली थी जिंदगी और थी कितनी सुहानी
कितनी कहानियाँ बनी कुछ नयी कुछ पुरानी
बुलबुलों ने जन्म लिया लगे अपनी सुनानी
बात यहीं बिगड़ी जब एक दुसरे की जानी
औरों पर इलज़ाम न लगा अच्छी बात नहीं
खुद को उसके पीछे न छुपा अच्छी बात नहीं
शर्म कर न उनको बातें सुना अच्छी बात नहीं
रिश्ते खुर्द बुर्द न कर तोड़ न अच्छी बात नहीं
रिश्तों के बीच सफर माना कि सुहाना नहीं है
तुम गिरे कि हम गिरे कोई भी अंजाना नहीं है
तुम खुद को सम्भालो मैं भी खुद को सम्भालूँ
बात छोटी सी है कुछ तुम टालो कुछ मैं टालूँ
बड़ी भीड़ से निकल कर भी तन्हा हो आये हैं
कितने मायूस हैं देखो न हम कैसे मुरझाये हैं
बन के अनजाने फिर एक दूसरे के हो जाएं
थोड़ा करीब आएं थोड़ा और करीब आएं
रखा भी क्या है एक दूसरे के बारे जानने में
बिना जाने अगर हम एक दूसरे को हो जाएं
Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem