A-033. कविता कुछ उदास है Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-033. कविता कुछ उदास है

आज मेरी कविता कुछ उदास है -13-5-15 (7.6.15-4.46 AM)

आज मेरी कविता कुछ उदास है
दूर खड़ी पर मेरे दिल के पास है
उसकी आँखें भी थोड़ी निराश हैं
उसके दर्द का मुझे भी एहसास है

हर पल गवाह है उसके करीब होने के
कोई कारण नहीं उसके गरीब होने का
गुमाँ उसका भी कोई दुःख रहा होगा
उसने चुप रहकर भी कुछ सहा होगा

उसके दर्द को मैं समझ पाया हूँ
अपनी हरकत पर मैं पछताया हूँ
उसके दर्द का कारण भी तो मैं ही हूँ
उसका दुख निवारण भी तो मैं ही हूँ

उसकी उदासी का सबब मैं कैसे कहूँ
उसके बिना नहीं रहना, अब कैसे रहूँ

उसके चेहरे की हँसी कहीं ग़ुम हो गयी
कुछ कहना है और जुबान सुन्न हो गयी

कुछ कहना होगा पर कह न पायेगी
फिर यही बात उसको बहुत सताएगी
उसे दर्द भी होगा मुझसे जुदा होने का
फिर यही बात उसको बहुत रुलाएगी

कौन सुनता है आज किसी के दर्द को
तरसता है इंसान कोई तो हमदर्द हो
उसका हमदर्द तब न जाने कहाँ होगा
वहम् का शिकार ही होगा जहाँ होगा

ढूंढ़ना और देखना क्या कोई मिलता है
मुरझाया हुआ फूल क्या कभी खिलता है
गिले शिकवे शिकायतों के अम्बर में कहीं
देखा है कभी क्या कोई चाँद निकलता है

उसको अपने तनहा होने का जो गरूर है
उसको भी इक गलतफहमी तो जरूर है
हाँ खुश है गर ग़लतफहमियों में रहकर
ख़ुशी भी दूँगा मैं अपने सारे गम सहकर

उस तक ये बात तो पहुँच ही जाएगी
मुझे रुलाकर वह भी कहाँ सो पायेगी
निकलेगा जनाज़ा उसकी मोहब्बत का
रोना बहुत आएगा पर वह रो न पायेगी

आज मेरी कविता कुछ उदास है...

Poet; Amrit Pal Singh Gogia
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Saturday, February 27, 2016
Topic(s) of this poem: sad love
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