A-053. कहार तू डोली उठा Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-053. कहार तू डोली उठा

कहार तू डोली उठा 28.9.15—9.05 AM

बेटी मेरी ससुराल चली
मत कर इंतज़ार मेरा
तूँ मुझको न और रुला…..
कहार तूँ डोली उठा…..

बड़े लाडों से है यह पली
डोली को धीरे से उठा
कदम देख देख रखियो
तूँ मुझको न और डरा…..
कहार तूँ डोली उठा …..

चुपके चुपके से आगे बढ़
हुई नहीं है कभी मुझसे जुदा
लपक कर लग जाएगी गले
फिर कौन करेगा इसको जुदा…..
कहार तूँ डोली उठा…..

विदाई के गीतों के संग
ले जा तूँ इसको भगा
पीछे मुड़ को जो देख लिया
नहीं मिलेगा कोई इसको सगा…..
कहार तूँ डोली उठा…..

धीरे धीरे से उतारिओ इसे
स्वप्न टूट जाये रोती कराह
चिपक कर सो जाती है फिर
कैसे कर पायूँगा मैं इसको जुदा…..
कहार तूँ डोली उठा…..

Poet; Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-053. कहार तू डोली उठा
Wednesday, April 27, 2016
Topic(s) of this poem: emotions
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