एक मेरे आने से -10.11.15—5.48 AM
एक मेरे आने से! ! ! ! !
यह कैसा बवाल खड़ा हो गया है
मैंने किया ही क्या है
क्यूँ यह सवाल खड़ा हो गया है
यह सोचता सोचता मैं आगे बढ़ा हूँ
मैंने देखा मैं तो अपनी ही बात पे अड़ा हूँ
सुनता तो मैं किसी को भी नहीं हूँ
मैं वही पुराना तरबूज अंदर से सड़ा हूँ
कुछ भी तो नया नहीं हैं
फिर किस बात पे खड़ा हूँ
जिंदगी की सच्चाई से कोसों दूर कहीं
एक भ्रम के संग जीवन से जुड़ा हूँ
मैं नहीं था
तब भी दुनिया चल रही थी
मैं अब हूँ तब भी चल रही है
मैं चला जायूँगा तब भी चलेगी
तो मैं किस भ्रम की मूली हूँ
चढ़ा रखा सबको क्यों सूली हूँ
क्या समझता हूँ मैं अपने आप को
सुनो सुन सकते हो अपने बाप को
अहम किस बात का मैं करता हूँ
नहीं मैं किसी के बाप से डरता हूँ
मैं मर जायूँगा तो सब भूखे मरेंगे
मैं जीवित हूँ तो सब मुझसे डरेंगे
कोई मेरे पास आता क्यों नहीं है
मेरा अस्तित्व उनको भाता क्यों नहीं है
मैंने ही एक दिवार खड़ी कर रखी है
यह बात मुझे कोई, समझाता क्यों नहीं है
समझाए भी कौन, जब कोई आता ही नहीं है
मैं बिलकुल अकेला हो गया हूँ
सोने के बिस्तर पर अकेला ही सो गया हूँ
सोने की सिल भी भाने सी लगी है
यह बात मुझे वो समझाने लगी है
दुनिया अब तेरे पीछे पीछे आएगी
और यह बात खुद ही समझ आएगी
बिना माया के किसी का गुजारा नहीं है
समझ आ जाएगी कि तूँ आवारा नहीं है
तूँ है तो दुनिया उनकी चलती है जनाब
तेरे बिना तो उनका गुजारा भी नहीं है
इसी एक झूठ को लिए मैं जी रहा था
अपना कफ़न मैं खुद ही सी रहा था
शुक्र है अपनों का मुझ जैसे को पाला है
ऋणी हूँ मैं उनका जिन्होंने मुझे संभाला है
आभारी हूँ उनका जो मुझे सहते आये हैं
नहीं चाहते थे रहना फिर भी रहते आएं हैं
माफ़ी चाहता हूँ उनसे जो मुझे सुनते आये हैं
रिश्ते मैं तोड़ता रहा और वो बीनते आएं हैं
आज अहसास हुआ वो हैं, तो मैं हूँ
सारा हादसा मेरे आने से हुआ था
आज मैं नहीं हूँ तो सब कुछ मेरे पास है
जीने का अहसास भी अब बिन्दास है
Poet; Amrit Pal Singh Gogia
My blog; gogiaaps.blogspot.in
Face book; Attitude: Dreams Come True
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