A-069. कुछ तो बात करो Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-069. कुछ तो बात करो

Rating: 3.5

कुछ तो बात करो 10.2.16—5.46 AM

कुछ तो बात करो
कुछ तो संवाद करो
कोई तो प्रश्न करो
कोई तो विवाद करो

कुछ तो हुआ होगा
कुछ तो छुआ होगा
कुछ तो रहा होगा
कुछ तो सहा होगा

कुछ तो जाता होगा
कुछ तो आता होगा
कुछ तो होता होगा
कुछ तो खोता होगा

अलग अलग रंगों के
कुछ तो विचार होंगे
कुछ अपने भी होंगे
कुछ लिए उधार होंगे

कुछ तो नज़रिया होगा
साजन साँवरिया होगा
कुछ तो प्यास होगी
कुछ तो कयास होगी

जब तक मैं सही हूँ
दूजा गलत होगा
आँखें भी नम होंगी
रिश्ता भी कम होगा

मोती भी टपकेंगे
दर्शन को तरसेंगे
नयन तरस जायेंगे
हम फिर पछतायेंगे

सब नजर का खेल है
न धक्का है न पेल है

अपनी नजर अपने पास रख पाएंगे
तब कहीं दूसरे को समझ पाएंगे..

तब कहीं दूसरे को समझ पाएंगे!

Poet; Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-069. कुछ तो बात करो
Monday, April 11, 2016
Topic(s) of this poem: motivational
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