तुम कौन हो 3.3.16—7: 34 AM
तुम कौन हो और किसके हो
सब झूठ है थोड़ा खिसके हो
ऐसे भ्रम में कैसे तुम रहते हो
कैसे कैसे दुःख तुम सहते हो
यह रिश्ते नाते यह सब झूठे है
छोटी सी बात पर कैसे रूठे हैं
कोई भी यहाँ पर तुम्हारा नहीं है
केवल भ्रम है कोई हमारा नहीं है
ये माँ बाप सब ढोंगी हैं
तुमको पैदा किया है अपने सुख पाने को
पाल पोस बड़ा किया तुमको रिझाने को
सुख नहीं मिलता तो क्या बोलते हैं
तोते उड़ जाते हैं और हवा तौलते है
यह बच्चे भी कुछ कम नहीं
कहीं भी वो तुम्हारे सम नहीं
जब तक दाना देते हो
तब तक सुख लेते हो
जब दम अदम हो जाता है
वह अपने रस्ते हो जाता है
किस मित्र की तुम बात करते हो
जिसके होने का तुम दम भरते हो
जो जान से भी प्यारा होता है
किसी का नहीं हमारा होता है
छोटी सी गलती हो जाता है बवंडर
स्वप्न महल भी बन जाते हैं खंडहर
सारी दोस्ती मिटटी में मिल जाती है
सिसकती पैरों में पड़ी धूल चटाती है
प्रेमी प्रेमिकाओं की तो बात ही निराली है
रात को दिन होता और हर दिन दिवाली है
इनके लम्बे लम्बे वायदे जिंदगी भर साथ निभाएंगे
थोड़ी सी कसक क्या हुई साथ ही खिसक जायेंगे
केवल अपनी प्यास बुझाएंगे
आप कुछ नहीं समझ पाएंगे
वो पति पत्नी........?
जीवन भर साथ देने का वचन बद्ध करते हैं
छोटी सी बात में एक दूसरे का बध करते हैं
अरे छूट गए वो साधु वो महान आत्माएं
खत्म नहीं होतीं इनकी कहानियाँ कथाएं
इनकी कथा कहानी अब हम कैसे सुनायें
बाहर पुण्य व् अंदर बैठी हैं दुष्ट आत्माएं
यह सब झूठे हैं मक्कार हैं
इनका होना भी धिक्कार है
तुझे मोह माया और पैसों से दूर कर
तुम्हारे जीवन के सुखों को घूर कर
तेरे सांसारिक जीवन को नरक बताकर
खुद रहते हैं कुटिया को महल बनाकर
हजारों साल पहले
न कोई खुदा न कोई जुदा था
न कोई साधु था न असाधु था
न कोई रिश्ता न कोई फरिश्ता था
एक इंसान था जो बहुत महान था.........
एक इंसान था जो बहुत महान था.........
Poet; Amrit Pal Singh Gogia
My blog; gogiaaps.blogspot.in
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आपकी इस ज़बरदस्त रचना के लिये बधाई. आपने इस दार्शनिक तेवर वाली कविता में समाज के दोहरे मुखौटे को उतार फेंकने का अच्छा प्रयास किया है. काश, हम सब लोग इस दिखावे की ज़िंदगी की सच्चाई देख पाते.