A-083. आज मेरी आँखों में Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-083. आज मेरी आँखों में

आज मेरी आँखों में गजब का सैलाब है 26-4-15
Dedicated to my beloved daughter Preanka Singhh

आज मेरी आँखों में गजब का सैलाब है
किसको ढूंढ़ती हैं और दिल क्यूँ बेताब है

ज़िन्दगी के हसीं सपने हमने भी संजोए थे
एक एक करके मनके हमने भी पिरोये थे
हर सांस ने जीवन का हर पल सवांरा था
वही न हुआ अपना जो कभी तो हमारा था

ज़िन्दगी के इस मोड़ पर किस से करूँ सवाल
क्यों भरोसा किया अपनों का, है इसका मलाल
कोई तो हो जिसको दिखे और समझे मेरा हाल
एक पल की ज़िन्दगी ने खड़े किये इतने सवाल

आसुओं का हुजूम आँखों में उतर आता है
उठकर बैठ जाना और सोना भी सताता है
कभी आँखें फैलाये छत को निहार रही हूँ
अंदर देखती हूँ और खुद को पुकार रही हूँ

पलकों की छाओं तले कैसे कोई रो सकता है
कौन इतना उदास होकर भी कैसे सो सकता है
निगाहें क्यूँ न तड़फ़ें, क्यूँ न इतनी बेताबी हो
नींद का बुरा हाल हो तो बन्दा क्यूँ शराबी हो

कोई आकर मेरी निगाहों से देखो तो ज़रा
कब कौन क्यूँ कितनी बार जिया और मरा
ये बात किसको कितनी समझ में आई है
ये कौन सी कहानी है जो बनी रुसवाई है

समझ आई कि किस्मत भी एक कहानी है
बातें छोटी सी हैं पर इक ये बात पुरानी है
कोई भी कभी भी किसी का हुआ ही नहीं
पर ये बात किसी को समझ नहीं आनी है

वो अभी अभी आया था और झूठा मुस्कुराया था
बातें कुछ और थी उसने कुछ और ही बताया था
दिखाया बहुत अपनापन, जवाबदेही दिखाते हुए
भागा निगाहें छुपाकर और पलट गया जाते हुए

उम्र के इस पड़ाव में सब कुछ सहज होता है
प्यार के दो पलों का सपना भी हसीं होता है
गीले शिकवे धुल जाते हैं अपनों के प्यार से
अच्छी लगने लगती है बातें प्यार के बयार से

मुस्कान जिंदगी की अब आँखों में आ बसी है
खुश हैं निगाहें और मुझे इस बात की ख़ुशी है
जान छूटी नहीं रहना अब किसी पत्थर के संग
वापिस चाहिए मुझे मेरी ज़िन्दगी का मेरा उमंग

वापिस चाहिए मुझे मेरी ज़िन्दगी का मेरा उमंग ……….

Poet; Amrit Pal Singh Gogia
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Saturday, February 27, 2016
Topic(s) of this poem: motivational
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