बहुत अच्छे 21.3.16- 7.36 AM
बहुत अच्छे दिन जो हमने गुजारे हैं
न कभी हम जीते थे न कभी हारे हैं
तुमने जो खेल दिया जिंदगी में
हम तो केवल उसी के सहारे हैं
जिंदगी में कठिनाइयाँ भी खूब रहीं
पैगाम तेरे हमने वैसे ही निस्तारे हैं
तुमने जो दिया मुझे पसंद रहा
हमने उसी में हर पल सवारे हैं
सूखी गीली सब स्वीकार किया
मुकद्दर के दिन भी हमने गुज़ारे हैं
तेरा किया मीठा लागे एहसास है मुझे
तुमने जो दिए वही दिन वही हमारे हैं
शुक्रगुज़ार हूँ तेरा ए मेरे प्रभु मेरे पिता
क्या खूबसूरती से तूने वो दिन सँवारे हैं
मुझ जैसा भाग्यशाली कोई और है ही नहीं
जिसने इतनी खूबसूरती से ये दिन गुजारे हैं
किस बात का चिंता किस बात का डर
तूँ मेरा है मैं तेरा हूँ फिर कौन बेचारे हैं
चढ़दी कला में तूँ है हम भी तो सहारे हैं
तुम वहाँ हम कैसे रह सकते किनारे हैं
मैं तेरे संग हूँ प्रभु और तूँ मेरे संग है
तेरे किये के रंग हैं होली के संग हैं
जो तूँ मुझे पुकारे है मैं भी आ गया हूँ
तूँ गले लगाना चाहे ये भी पा गया हूँ
तेरे गले लग जाना बहुत दूर की बात है
तेरी व मेरी तो बची केवल सुहाग रात है
तेरे रोम रोम में बसे मेरे रोम रोम सारे हैं
किसके संग न रहूँ मैंने तो सभी निस्तारे हैं
किस बात का गम किस बात की चिंता
हम दोनों केवल एक दूसरे के सहारे हैं
तुम को ढूँढूँ ही क्यूँ जब दिल में बसे हो
और............................ ……......?
तुम मुझ में बसे हम तुझ में सारे के सारे हैं.......
तुम मुझ में बसे हम तुझ में सारे के सारे हैं........
Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'
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This is very motivational poem in this day where we feel essence of living. Neither we suffer nor we sustain. But remaining neutral matters a lot for right track. Wisely penned...10
Thanks a lot for motivating me the way I am & the way I am not. It's grace for me! Thanks again