सब भाषा की उत्पत्ति हैं 20.1.16—6.24 AM
जितनी भी बाधाएँ हैं
अपनी ही सीमाएं हैं
कदम जब रुकने लगे
मन कभी झुकने लगे
रुकने में जो सवाल है
वही बुद्धि का विस्तार है
जितनी भी राधाएँ हैं
अपनी ही गाथाएँ हैं
बन चुका विश्वास जो है
मेरे मन का एहसास जो है
मेरा तेरा इकरार जो है
उस में बँधा प्यार जो है
प्रेम रस सिंगार जो है
गीत मृदुंग थाप जो है
पौर पूरान सब वेद कथा है
हमने ही तो विचार मथा है
प्रकृति ने जो संसार रचा है
भाषा में ही विस्तार छिपा है
हमने जो इतिहास रचा है
घोषणा ही आधार बना है
सोचो अगर यह भाषा न होती
हमारी तुम्हारी बात क्या होती
कौन सी कविता कैसी रचना
किस से भागना किससे बचना
कौन सा झगड़ा किसका प्यार
कौन किसका है किसके द्वार
अपना कौन है क्या लगता है
सुन्दर है फूल कैसा फबता है
गूँगे की भी अपनी ही भाषा है
जितनी भाषा उतनी आशा है
भाषा में ही जान सकते हो
उसको भी पहचान सकते हो
सब भाषा की उत्पत्ति हैं
बस यही हमारी संपत्ति है
Poet; Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'
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