A-159 पागल Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-159 पागल

A-159 पागल28-6-15-8: 24 AM

पागल हो गया हूँ या मैं तेरा दीवाना हूँ
तुम मेरी शम्मआ हो मैं तेरा परवाना हूँ

कोई हकीकत है या सपने संजो रहा हूँ
सपनों का इक नया संसार पिरो रहा हूँ

आओ एक बार मुझे बाँहों में थाम लो
थोड़ा करीब रहकर सयंम से काम लो

अपनी मुश्किलों को थोड़ी पहचान दो
अपने प्यार को एक प्यारा सा नाम दो

याद है जब जानम पहली बार मिले थे
अन्जाने में ही पर कितने फूल खिले थे

तेरे चेहरे पर एक हया का पहरा था
असर जिसका मुझपे बहुत गहरा था

एक बार तो मैं सच में घबरा गया था
नजरें बचाते हुए तुमसे छिपा गया था

फिर तुम भी तो धीरे से मुस्कुराई थी
और तुम भी कितनी करीब आयी थी

तुमको देखकर नशा हुआ जाता था
एक ख़्याल आता तो एक जाता था

तुमने भी तो कितने सवाल कर डाले थे
और देखा मेरे ज़वाब कितने मतवाले थे

तू फूलों की ख़ुशबू मैं भंवरा दीवाना हूँ
तेरे नयन नीर के तीर का मैं निशाना हूँ

पागल हो गया हूँ या मैं तेरा दीवाना हूँ
तुम मेरी शम्मआ हो मैं तेरा परवाना हूँ

Tuesday, March 10, 2020
Topic(s) of this poem: love,relationships
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