A-165 हम तन्हा हुए
हम तन्हा हुए उनकी जवानी देखकर
उन्होंने मुझे एक दीवाना करार दिया
हमने लोगों को उनके किस्से सुनाये
लोगों ने इसे अफ़साना करार दिया
हम उनके मजहब के गीत गाते रहे
लोगों ने इसे इश्काना करार दिया
किसी और की मैं कैसे इबादत करूँ
लोगों ने मुझे परवाना करार दिया
उनको सुनकर ही मजहब बनता है
लोगों ने मुझे मजहबी करार दिया
उनसे उलझ जायूँ यह दुरुस्त नहीं है
लोगों ने मुझे बुज़दिल करार दिया
बातों का बोझ मैं नहीं सह पता हूँ
पर मैंने कब इससे इंकार किया
नहीं लेना मैंने गलती का इंतक़ाम
मैंने खुद से ही एक इक़रार किया
या मौला...........
उनको तहज़ीब देमुझको तरतीब
सुन ले मेरी मैंने तो फरियाद किया
हम तन्हा हुए उनकी जवानी देखकर
उन्होंने मुझे एक दीवाना करार दिया
Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"
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