A-245 उनके पैरों की आहट Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-245 उनके पैरों की आहट

A-245 उनके पैरों की आहट 27.2.17- 6.44 AM

उनके पैरों की आहट से मिली जो गुफ़्तगू
बजे दिल की वीणा के तार थम थम के

उनका एक एक कदम ज्यों ज्यों आगे बढ़ा
बहने लगी संगीत की बयार थम थम के

दिल की धड़कन ने तो दिल ही थाम लिया
धड़कता रहा उनकी इंतज़ार में थम थम के

सीने में ललक उठी उसे सीने से लगाने की
बाहें खुलती चली गयीं बेशुमार थम थम के

बात तो तब बनी जब आंसूओं ने रुख किया
होने लगी खुशियों की बरसात थम थम के

अँखियों में नींद की बेशुमारी का ये आलम
पलकें झपकती रहीं लगातार थम थम के

आँखें मूँदे बैठे थे कि इंतज़ार मुकम्मल हो
कब आयी झपकी बेअख्तियार थम थम के

नींद खुली तो मेरी बाँहों के होश उड़ गए
क्यों सिसक रहे थे वो लगातार थम थम के

पायल भी कहाँ रुकने वाली थी अब ‘पाली'
थिरक पड़ी सरगम पर लगातार थम थम के

Poet: Amrit Pal Singh Gogia

A-245 उनके पैरों की आहट
Monday, February 27, 2017
Topic(s) of this poem: love and friendship,relationships,romance
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