A-272 मत रोको मुझे Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-272 मत रोको मुझे

A-272 मत रोको मुझे 24.7.16—8.15AM

मत रोको मुझे आज बरस जाने दो
अपने आगोश में खिसक जाने दो
दो जिस्म हैं मगर एक जान हैं हम
हम दोनों को आज क़रीब आने दो

मुद्दत से इंतज़ार है जिस बहार का
बल खाती पवन रुख इज़हार का
सावन की घटा आज छा जाने दो
उसको भी अपनी जुल्फें लुटाने दो


पवन रुख अठखेलियाँ करे तो करे
अपने वादों के संग उलझ जाने दो
दूर गगन तक जाने का वादा किया
उनको अपनी मरजी तक जताने दो

क्रोध उनका टूटे उनको चिल्लाने दो
दुनिया तमाशा देखे चल दिखाने दो
झक झोरने दो उसको हर टहनी को
ताण्डव नृत्य अपना उसे दिखाने दो

गुस्सा पवन का उसको दिखाने दो
जब तक चाहे आज बरस जाने दो
शांत हो जाये जो मन उसका कहीं
चुपके चुपके उसे खिसक जाने दो

शांति पाठ का हवन भी हो जाने दो
पवन को भी मंद मंद मुस्कुराने दो
ज़िंदगी भी मोहताज़ इसी सबक में
रुक जाओ सब्र को सज़ग आने दो

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

A-272 मत रोको मुझे
Saturday, June 24, 2017
Topic(s) of this poem: love,love and dreams,love and friendship,relationship
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