आप बिना दफ़न Aap Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

आप बिना दफ़न Aap

आप बिना दफ़न

Sunday, February 18,2018
12: 09 PM

आप बिना दफ़न

जो ईश्वर को नहीं मानता हो
दुसरो को तुच्छ समझता हो
इंसानी जज्बेको ना मानता हो
और जिसे अपना ही पता ना हो?

वो दूसरों की कदर क्या करेगा?
अपनापन कैसे ला पायेगा?
इंसान, इंसान की ही पहचान नहीं रखेगा!
तो ये बात मानकर चलो की दुनिया का अंत ही होगा।

जिस दिन उसे ठोकर लगेगी!
उसकी शान ठिकाने आ जाएगी
कोई उसे पूछेगा तक नहीं
सब कुछ भुगतेगा ही यही।

अपना कसूर उसे नहीं पता पडेगा
वो दूसरों को मारने दौड़ेगा
अगलबगल वाले उसे नहीं रोकेंगे
अपनेगुमान में वो कैदही रहेगा

दुनियाबहुत ही छोटी है दोस्त
ना रहो इतना मस्त
की जमीं भी आपको लेने से इंकार कर दे
और आप बिना दफ़न सड़क पर पड़े रहे।

आप बिना दफ़न Aap
Sunday, February 18, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 18 February 2018

welcome Nikolay petkov 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathalal 18 February 2018

दुनियाबहुत ही छोटी है दोस्त ना रहो इतना मस्त की जमीं भी आपको लेने से इंकार कर दे और आप बिना दफ़न सड़क पर पड़े रहे।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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