आपका दुखदर्द Aapkaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

आपका दुखदर्द Aapkaa

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आपका दुखदर्द

शनिवार, ९ जून २०१८

हमारे सब होंगे
अपनापन जताते होंगे
समय आने पर मिलते भी होंगे
अपनी कहानी बयान करते भी होंगे।

यह दुनिया की रीत है
हर कोई उस मे लिप्त है
कोई अपने तरीके निपट रहा है
तो कोई सच्चे दिल से कह रहा है।

जन में से ही स्वजन बनते है
फिर वो आप्तजन भी कहलाते है
वो महज खून का रिश्ता कहलाता है
आदमी का सर उसमे झुका सा रहता है

आँखों में सब समाये हुए है
प्यार से गले लगाए हुए है
एक दूसरे के बिना नही चलता
उनका हर रूप आँखों को सुहाता

उस का सही प्रमाण तब ही मिलता है
जब आप समस्या से धीरे होते है
चारो और मुसीबतों के पहाड़ टूट पड़ते है
आपके साथ खड़ा रेंहनेवाला और साथ देनेवाला कोई नहीं होता है।

उस घडी में आप हमें याद कर लैना
बस थोड़ी सी पुकार दे देना
हम भागे चले आएँगे
आपका दुखदर्द जरूर से बाटेंगे।

हसमुख अमथालाल मेहता

आपका दुखदर्द Aapkaa
Friday, June 8, 2018
Topic(s) of this poem: poem
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उस घडी में आप हमें याद कर लैना बस थोड़ी सी पुकार दे देना हम भागे चले आएँगे आपका दुखदर्द जरूर से बाटेंगे। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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