बुहत हुआ ये तुम पर लिखना..
अब के बस मिलना है तुमसे....
जानना है मुझको वो सब..
जो मैं लिखती हूँ क्या? वो सच है...
क्या ये सच है के तुम आज भी
महसुस करते हो मुझे हर पल हर लम्हा...
क्या तुम आज भी मेरी आँखें पढ़ के बता सकते हो मेरे दिल के हालात क्या है?
क्या तुम आज भी मेरी तस्वीर से बातें किया करते हो...
मैं जानना चाहती हूँ...
क्या अब भी चुभते है तुमको मेरे फोटो पे आये अन्जाने लोगों के कमैंट्स....
क्या अब भी तक़्लीफ़ देता है तुमको मेरे नम्बर का बिज़ी होना...
क्या आज भी तुमको छत पर टहलते हुये मेरी याद आ जाया करती है..
चाँद को जब देखते हो मेरा चेहरा नज़र आता है क्या? ? ?
जानां....
अगर ये सब अब भी क़ायम है तो बस................
बुहत हुआ ये तुम पर लिखना..
अब के बस मिलना है तुमसे ।
By -:
Bhavna R Verma
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A nice poetic imagination, bhavana gi. You may like to read my poem, Love and Lust. Thanks