अहंकारी... Ahankari Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अहंकारी... Ahankari

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अहंकारी
रविवार, २६ अगस्त २०१८

अहंकारी
उस से जिंदगी तभी हारी
जब उसने मुझे तुच्छकारा
और नहीं माना अपना।

पैसे का या रूप का
अभिमान क्षणिक होगा
लक्ष्मी तो चंचल है
और रूप को तो चलते ले बनना है।

सब मुंह मोड़ लेंगे
और किनारा कर देंगे
अपमान होने से तो अच्छा मित्र ही ना हो
और हो भी तो ऐसा कभी ना हो।

घमंड इंसान में कैसा?
ऐसी क्यों हो जाती है मनसा?
अपने को ही हम अलग कर दें
अपनी ही दोस्ती को बिदा कर दे।

फैला दो अपनी बांहे
डर रखो मांहे
प्यार का सन्देश फैलाओ
सब को अपना बनाओ।

ना अहंकार काम आएगा और नाही दौलत
इनको अपने पास ज्यादा रखना है गलत
जिंदगो को समझो और सुख से जीओ
हर गलत चीज़ को जमीं में दफनाओ।

हसमुख अमथालाल मेहता

अहंकारी... Ahankari
Sunday, August 26, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 26 August 2018

बेशक, अहंकारी व्यक्ति का अंत दुखद ही होता है, रोने वाला कोई नहीं होता....बढ़िया कविता

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Mehta Hasmukh Amathalal 26 August 2018

ना अहंकार काम आएगा और नाही दौलत इनको अपने पास ज्यादा रखना है गलत जिंदगो को समझो और सुख से जीओ हर गलत चीज़ को जमीं में दफनाओ। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathalal 26 August 2018

ना अहंकार काम आएगा और नाही दौलत इनको अपने पास ज्यादा रखना है गलत जिंदगो को समझो और सुख से जीओ हर गलत चीज़ को जमीं में दफनाओ। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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