अमर प्रेमकथा... Amar Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अमर प्रेमकथा... Amar

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अमर प्रेमकथा
बुधवार, ५ सितम्बर २०१८

ए कैसी प्रीत मैंने लगाईं!
पर संग आंख लडाई
मैन हो गई हरजाइ
जग में हो गई हसाई।

खिलती कली मुरझाई
चेहरे की रौनक गंवाई
लोग लगे पूछने
पराए तो पूछे पर अपनों ने की तवाई।

ना पूछा मैंने कहाँ से हवा आई?
अखियां मेरे बस में ना रेह पाई
बस हां कर दि धीरे से
ना डरी फिर में मरने से।

प्रीत करना मना नहीं
यही है रास्ता सही
कुदरत की है ये अनोखी रचना
हम को तो है सिर्फ चुनना।

प्रीत की रीत होती अनेरी
सुबह लगती सुनहरी सुनहरी
ना में हारी, ना जीत तुम्हारी
अमर रहेगी प्रेमकथा हमारी।

हसमुख अमथालाल मेहता

अमर प्रेमकथा... Amar
Wednesday, September 5, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 05 September 2018

प्रीत की रीत होती अनेरी सुबह लगती सुनहरी सुनहरी ना में हारी, ना जीत तुम्हारी अमर रहेगी प्रेमकथा हमारी। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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