अमर प्रेमकथा
बुधवार, ५ सितम्बर २०१८
ए कैसी प्रीत मैंने लगाईं!
पर संग आंख लडाई
मैन हो गई हरजाइ
जग में हो गई हसाई।
खिलती कली मुरझाई
चेहरे की रौनक गंवाई
लोग लगे पूछने
पराए तो पूछे पर अपनों ने की तवाई।
ना पूछा मैंने कहाँ से हवा आई?
अखियां मेरे बस में ना रेह पाई
बस हां कर दि धीरे से
ना डरी फिर में मरने से।
प्रीत करना मना नहीं
यही है रास्ता सही
कुदरत की है ये अनोखी रचना
हम को तो है सिर्फ चुनना।
प्रीत की रीत होती अनेरी
सुबह लगती सुनहरी सुनहरी
ना में हारी, ना जीत तुम्हारी
अमर रहेगी प्रेमकथा हमारी।
हसमुख अमथालाल मेहता
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प्रीत की रीत होती अनेरी सुबह लगती सुनहरी सुनहरी ना में हारी, ना जीत तुम्हारी अमर रहेगी प्रेमकथा हमारी। हसमुख अमथालाल मेहता