अपना बनाना Apna Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अपना बनाना Apna

अपना बनाना

अपना जब पराया लगने लगे
तब ही सोचने लगेंगे
ये क्या हो रहा है जीवन में?
आंधी का संकेत क्यों मिल रहा है गुलशन में?

थम जाने दो तूफ़ान
ना मचाना कोहराम
धीरे से सोचना है हमारा काम
फिर लगने लगेगी सुनहरी शाम।

हो सकता है नजर का धोखा
आँखों ने जो देखना था वो नहीं देखा
मन ने भी अपना रास्ता चुन लिया
बस फिर तोआंधी और तूफ़ान ने जगह ले लिया।

ये वजह नहीं हो सकती
नजरे बार बार धोखा नहीं खाती
अपनों पर प्यार ही है बरसाती
रोती प्यार से और हरखाती।

मेरे अपने अपने है
जिनको मैंने अपनाएँ है
गले से लगाकर पाला है
तभी तो इतना बोलबाला है।

ना रखेंगे कभी ऐसी सोच
जो करवाएगी अपनों से संकोच
होने तो बस हँसके जीना है
दूसरों को अपना बनाना है।

अपना बनाना  Apna
Sunday, May 21, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 21 May 2017

बहुत सुंदर कहा गया है. अक्सर ऐसा होता है कि हम कुछ सोचते हैं और वास्तविकता कुछ और होती है. इसी कारण बहुत से संबंधों में दरार पैदा हो जाती है. श्रेष्ठ अभिव्यक्ति. ये क्या हो रहा है जीवन में /....हो सकता है नजर का धोखा आँखों ने जो देखना था वो नहीं देखा /....मेरे अपने अपने है

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ना रखेंगे कभी ऐसी सोच जो करवाएगी अपनों से संकोच होने तो बस हँसके जीना है दूसरों को अपना बनाना है।

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Poet Priyatosh Das Thank u Sir. Like · Reply · 1 · 4 hrs

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welcome priyatosh das Like · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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