अपनापन... Apnaapan Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अपनापन... Apnaapan

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अपनापन

शनिवार, ७ जुलाई २०१८

किसी ने ना पूछा
ना ही आंसू पोंछा
मुझे दिल से रोना आ गया
जिंदगी से मानो ऊब सा गया।

दिल है की मानता ही नहीं
क्या मानव धर्म है यही?
एक दूसरेनो ना कभी देखा
और नाही कभी सूना।

दिल मानो लुडक सा गया
उसके लिए तरस सा गया
हर धड़कन उसके गीत गाने लगी
मुजे हरदम उसकी याद सताने लगी

प्रेम का यही पेहलु सुन्दर है
उसकी महत्तादिल के अंदर है
दिल तड़पता है मिलन के लिए
दो अनजानों को मिलाने के लिए।

मुझे नहीं पता
पर बहुत सताता
उसका सूखापन
वो नहीं जानती होगी क्या होता है अपनापन।

हम नहीं बताएंगे अपने दिल का हाल
जो बीत गया वो था कल
पर धड़कनपर मेरा कोई वश नहीं
प्यार के लिए भी में विवश नहीं।

हसमुख अमथालाल मेहता

अपनापन... Apnaapan
Saturday, July 7, 2018
Topic(s) of this poem: poem
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हम नहीं बताएंगे अपने दिल का हाल जो बीत गया वो था कल पर धड़कन पर मेरा कोई वश नहीं प्यार के लिए भी में विवश नहीं। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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