अपने चश्मे से Apne Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अपने चश्मे से Apne

अपने चश्मे से apne

हम सिर्फ हिंदुस्तानी है
दिल्ली हमारी राजधानी है
हमने राजनितीक धुरा आपको सौपी है
फिर भी आपने हमारे पर अनैतिक विचारधारा थोपी है।

आपने अपना घर तो ठीक किया नहीं
सरकारी पैसे का इस्तेमाल अच्छी तरह किया नहीं
लगे सरकारी पैसे का व्यय करने और अपने ही गुणगान गाने
अरे गरीब गुरबो का पहले रैनबसेरा तो ठीक करते, बाजार सरे आम बीजली बिल का ढंढोरा ना पीटते।

कहाँ की 'ईंमानदार सरकार' का दावा करते हो
दिल्ली सम्हलता नहीं ओर पंजाब में चुनाव प्रचार करने लगे हो
एक मिला मानगायक जो चूर रहता है नशे में
कैसे बच पाओगे नशे की चुंगाल से?

आपके बोलने का तरीका ठीक नहीं
हर कोई जानता है हवा के विपरीत चलना बुद्धिमानी नहीं
आप अपने सींग ताकतवर के साथ भिड़ाते रहे
जब की अपने ही घर में चापलूस और बेईमान आपसे भिड़ते रहे।

एक सज्जन हजार दुर्जनो को भारी पड सकता है
यदि आनबान की बात को मानकर जो आघे बढ़ता है
हो सकता है थोड़ी देरी हो जाए ऊपर पहुंच ने में
पर यही तकाजा है अपने आपको साबित करने में।

जो ईमानदारी का ढोल आप पीट रहे है
वो असल में आपके मृत्युघंट का आगाह है
ऐसा कभी ना हो जाए की दिल्ली भी हाथ से चला जाए
और पंजाब के नशेड़ी आपको सतलुज में बहा जाए।

ये राजकारण है कहने से कोई ईमानदार नहीं हो जाता
लोग पीढ़ियों से जनता के पैसे से अपना कुनबा चला रहे है
कोई घासचारा खा गया तो कोई पुरे देश की संपदा
देश के माथे पर है विपदा ही विपदा।

मुझे गलत मत समझना यारों
ऐसे तो बहुत मिलेंगे हर गलियारों में
किसानो की मौतों को भी आंकड़े से नापते है
मानो हरकोई चीज अपने चश्मे से देखते है।

अपने चश्मे से Apne
Wednesday, February 22, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 22 February 2017

मुझे गलत मत समझना यारों ऐसे तो बहुत मिलेंगे हर गलियारों में किसानो की मौतों को भी आंकड़े से नापते है मानो हरकोई चीज अपने चश्मे से देखते है।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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