अपनी-अपनी बात
शनिवार, ६ अप्रैल २०१९
अड़े रहे हम अपनी अपनी बातपर
करते रहे चर्चा सारी रातभर
ना आप झुके ना हम हटे
अपनी अपनी बातपर डटे रहे।
जब ना बनी कोई बात!
फिर कोसते रहे हम सारी रात
एक दूसरे को चुपचाप देखते रहे
पर अब हम अपनी बात कैसे कहे?
दोनों का अहम् टकराता रहा
मन का बोज बढ़ता गया
जब ना रहा कोई चारा?
बस दिल भीतर से ज़लता रहा।
अब तो मिल रहे है दुश्मन की तरह
मन में खूब खलता है विरह
आह! हो जाती है एक कसक
फिर भी नहीं लिया कोई सबक।
जब आपके मिट जाएंगे क़दमों के निशान
हम बचाते रहेंगे अपनी शान
इस तरह तो हमारा अंत आ जाएगा
बचाखुचा भी हमारे दहन के साथ ख़त्म हो जाएगा।
हसमुख मेहता
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जब आपके मिट जाएंगे क़दमों के निशान हम बचाते रहेंगे अपनी शान इस तरह तो हमारा अंत आ जाएगा बचाखुचा भी हमारे दहन के साथ ख़त्म हो जाएगा। हसमुख मेहता Hasmukh Amathalal