अपनी पहचान Apni Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अपनी पहचान Apni

अपनी पहचान

इंसानियत के नाते भी
हम सभी भी
जुड़े है कुछ रिश्तें से
बहुत सी बातें से।

उन सब में एक भाईचारा सा रिस्ता है
जो बहुत ही लाजवाब दीखता है
जज्बे में उसे तोला जा सकता है
जीवन में कोई भी अपना सकता है।

किसी को आप तकलीफ में नहीं देख सकते!
आप का वो कुछ लगता है या नहीं फिर भी इंसानी रिश्ते
ऐसे है जो आपको मजबूर कर देते है
आप खुद भी उसे तकलीफ में देखकर रो पड़ते है।

ऐसा इंसानी जज्बा बेमिसाल है
क्योंकी इंसान का खून भी लाल है
उसका दिल भी खुशबु से भरा हुआ है
मन भी हरा हरा और उर्मिओं से भरा हुआ है।

कुछ तो बात है इंसानो में
जो बना देती है जड़ें मजबूत दिलों में
कर देती है बुलंदी से अपनी पहचान
फिर उठती है एक ही बोली और वोही बनती है शान।

नाज होगा आपको अपनी दोस्ती पर
आप कहते फिरोगे उसपर
आप को अटूट विश्वास होगा अपनी दोस्ती पर
यही तो है इंसानी ताल्लुक और गुरूर।

अपनी पहचान Apni
Thursday, June 1, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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welcome balika sengupata Like · Reply · 1 · Just now

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welcome aasha sharma Like · Reply · 1 · Just now · Edited

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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