चुप्पी Poem by Arvind Srivastava

चुप्पी

●अरविन्द श्रीवास्तव

उन यादों को चमकाता हूँ मैं
जिसे समय ने बदरंग कर दिया है
एक बिम्ब जो बिखर रहा है
उसकी मरम्मत करता हूँ मैं
एक अहसास जो कांच के मानिंद चनक गया था
उसे स्मृतियों के हवाले रख
विस्मृत होने से बचाया मैंने

और एक लम्बी चुप्पी
जो हमारे दरम्यान वर्षों से पड़ी थी
कान के करीब जाकर
एक जोरदार सीटी मारी मैंने!

चुप्पी
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