एक अजनबी सा एहसास है एक अजनबी के साथ Poem by Ashish Singh

एक अजनबी सा एहसास है एक अजनबी के साथ

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तुझे देख लग रहा आज ही मैं सब हार जाऊँ
रूहानी खुशी को अपने नयन में भरूँ
तेरा दीदार हो और बस तेरा दीदार करता जाऊँ
अलबेली, नखरीली और चुलबुली,
इस अदा पर तेरे
अपना सब कुछ वार दूँ।
नजर ना लगे तुझे आ मेरे पास
तुझे काला टीका लगा
तेरी नजर उतार जाऊ ।
रिमझिम बारिशों के
इस सुहाने मौसम में,
इक अजनबी-सा एहसास है
इक अजनबी के साथ..
रुक से गए हैं कदम
रुक सा गया है ये वक्त
पर बढ़ रही बेताबियाँ
और बढ़ रही मेरी प्यास
अब गुजारिश है यही
मुकम्मल हो जाए मेरी अरदास
इक अजनबी-सा एहसास है
इक अजनबी के साथ...

© Mγѕτєяιουѕ ᴡʀɪᴛᴇR✍️

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