क्या कहूं तुझे तू ही बता
क्या कहूं तुझे तू ही बता
नींद कहूं ख्वाब कहूं या कहूं हकीकत
या कह दू आकर ठहर जा मेरी जिंदगी में
क्योंकि जीने के लिए है मुझे अब
किसी खाश वजह की जरूरत.....
क्या कहूं तुझे तू ही बता
नींद कहूं तो आती नहीं है
ख्वाब कहूं तो दिखती नहीं है
हकीकत क्या है कुछ पता नहीं
हां जरूरत कह सकता हूं मैं
पर कैसे कहूं किस हक से कहूं
अब तेरा मेरा राब्ता जो नहीं है......
क्या कहूं तुझे तू ही बता
कौन है तू, कहां है तू
फिर भी ना जाने क्यू मेरा जहां है तू
जी करता है पढ जाऊ जिसे पुरी
हाँ वो एक किताब है तू
लिखू तुझे तो शब्द नहीं मिलते
मिले बिन भी देखो कैसे लोग हैं मिलते
क्या कहूं तुझे तू ही बता
तेरा होना है मुझे
चाहिए बस तेरा प्यार
तेरी चाहत ही है एक सच्ची
दुनिया लगे है अब बेकार
पाके तुझे जाने कैसा सुकून पाया है
शायद ढूंढ रहा था मन जिसे तू वही छाया है
क्या कहूं तुझे तू ही बता
हम जो ऐसे दूर हुए थे
जाने कितने मजबूर हुए थे
पर अब चाहता हूं फिर से बंंध जाए
हम उस डोर से एक बार
Jude the जिससे हमारे दिल के तार
जिसे कोई एक खींचे तो दूजा चले आए हर बार...! ! !
© Mγѕτєяιουѕ ᴡʀɪᴛᴇR✍️
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