बच गयी
तुम बच गयी
वरना सहमत थी आयी
खड्डे ड़े में ही गीरने वाली थी
लेकीन हम ने झुककर समाली बाजी थी।
इतना मत करो गुमान
ना रहो हमेशा सातवे आसमान
की सहना पड़े फिर से कोई अपमान
फिर कैसे रखोगे अपना ध्यान?
अपना गुरुर अपनी जगह
सोचो और रखो सही वजह
सुनो सबकी लेकीन करो अपने मनकी
फिर भी ना करो अनदेखी सब की।
आजकल मिटटी की भी जरूरत पड जाती है
रास्ते आते जाते अनजानो की मदद मिल जाती है
कोई नहीं ना कहता 'सब अपने में मस्त रहते है'
गरीब तो गरीब अरे पागल भी दुआ दे जाते है।
अपने आप खुद ही समलो
खूबसूरती को खुद ही समालो
कोई चीज़ कायम रहती नहीं
नफरत कभी किसी का ईमान पूछती नहीं।
गिरोगे तब ही समलोगे
सब का दुःख नजदीक से कान पाओगे
समाज का एक अंग आपभी हो
उनके लिए आप सुरभि भी हो।
ऐसी रागनी हवा में लहराना
लगे ेकुदरत का नजराना
पंखी भी झूम उठे. इंसान भी नाचने लगे
सब को अपना सा लगे और एक साथ मांगे।
pic: - cristina
Gyaneshwar Prasad · 21 mutual friends Very Nice Poem Like · Reply · 1 · 34 mins
welco me gyaneshwar prasad Like · Reply · 1 · Just now
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ऐसी रागनी हवा में लहराना लगे ेकुदरत का नजराना पंखी भी झूम उठे. इंसान भी नाचने लगे सब को अपना सा लगे और एक साथ मांगे। Pic: - Christina