बच गयी Bach Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

बच गयी Bach

बच गयी

तुम बच गयी
वरना सहमत थी आयी
खड्डे ड़े में ही गीरने वाली थी
लेकीन हम ने झुककर समाली बाजी थी।











इतना मत करो गुमान
ना रहो हमेशा सातवे आसमान
की सहना पड़े फिर से कोई अपमान
फिर कैसे रखोगे अपना ध्यान?

अपना गुरुर अपनी जगह
सोचो और रखो सही वजह
सुनो सबकी लेकीन करो अपने मनकी
फिर भी ना करो अनदेखी सब की।

आजकल मिटटी की भी जरूरत पड जाती है
रास्ते आते जाते अनजानो की मदद मिल जाती है
कोई नहीं ना कहता 'सब अपने में मस्त रहते है'
गरीब तो गरीब अरे पागल भी दुआ दे जाते है।

अपने आप खुद ही समलो
खूबसूरती को खुद ही समालो
कोई चीज़ कायम रहती नहीं
नफरत कभी किसी का ईमान पूछती नहीं।

गिरोगे तब ही समलोगे
सब का दुःख नजदीक से कान पाओगे
समाज का एक अंग आपभी हो
उनके लिए आप सुरभि भी हो।

ऐसी रागनी हवा में लहराना
लगे ेकुदरत का नजराना
पंखी भी झूम उठे. इंसान भी नाचने लगे
सब को अपना सा लगे और एक साथ मांगे।

pic: - cristina

बच गयी Bach
Monday, May 29, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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ऐसी रागनी हवा में लहराना लगे ेकुदरत का नजराना पंखी भी झूम उठे. इंसान भी नाचने लगे सब को अपना सा लगे और एक साथ मांगे। Pic: - Christina

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Gyaneshwar Prasad · 21 mutual friends Very Nice Poem Like · Reply · 1 · 34 mins

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welco me gyaneshwar prasad Like · Reply · 1 · Just now

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welcome aman pandey Like · Reply · 1 · Just now

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welcome rupal bhanari Like · Reply · 1 · 1 min

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welcome kamini shah Like · Reply · 1 · 1 min

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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