बलि चढ़ा दी... Bali Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

बलि चढ़ा दी... Bali

बलि चढ़ा दी
शुक्रवार, ७ सितम्बर २०१८

मेरा मन चला उस और
जहाँ किया मैंने गौर
क्यों मच रहा था शोर?
बात होगी कोई गंभीर!

लोग बिच सड़क पिट रहे हे
प्रेमी जोडे बिलख रहे है
"छोड़ दो हमें छोड़ दो"
हमें सकुशल घर जाने दो।

लोगों पर भुत सवार था
मरने मारने का बुखार चढ़ा हुआ था
किसी ने उनकी एक बात ना सुनी
बस उनके पर जान की आफत आ बनी।

टपली दांव चले लगा
जो भी आया, अपना हाथ साफ़ करने लगा
फिर कहीं से आवाज आई " मारो, मारो"
उनको ऊपर पहुंचादो।

किसी ने किसी को भी इत्तला ना दी
उनकी महोब्बत की बलि चढ़ा दी
वो तो मारे गए, पर अपनी महोब्बत के लिए जान दे दी
उफ़ तक ना की और सहर्ष बीदा ले ली।

हसमुख अमथालाल मेहता

बलि चढ़ा दी... Bali
Friday, September 7, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 08 September 2018

welcome Navin Kumar Upadhyay 33 mutual friends Message

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Mehta Hasmukh Amathalal 08 September 2018

welcome Sanjay Doshi 17 mutual friends 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathalal 07 September 2018

किसी ने किसी को भी इत्तला ना दी उनकी महोब्बत की बलि चढ़ा दी वो तो मारे गए, पर अपनी महोब्बत के लिए जान दे दी उफ़ तक ना की और सहर्ष बीदा ले ली। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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