बात में दम कम है
कवी का मन निराला
पर क्या करे अबला?
एक ही पती है
वरना उनको बनना तो सती ही है
वो बाण साधते है
पर रुक से जाते है
नहीं बनता उनसे निशान अंकित करना
पर सिर्फ जानते है अपने आपलो कलंकित करना
पत्नी जानती है 'ये मस्का मार रहे है'
अपनी मार दुसरे पे जाहिर कर रहे है
कितनी तितलिया सवार हे उनके दिमाग में
बताना चाहते है में ही हु उनके विचारों में
पर ये विवश कभी नहीं
निराशा के सुर ये बांधते नहीं
पकडे जाय तो कह देते है 'तुम ही तो हो मेरे बंदगी'
वरना जहन्नुम है ये पूरा दोजख और जिन्दगी
असल मसला कही और है
कवी के मन में शोर है
किसी ओर अबला के वो अभिलाषी है
घरवाली के सामने मितभाषी है
अहर्निश अपनी कविता में राचते रहते है
गुनगुनाते और आकश की और देखकर कहे रहता है
मानो चाँद उनकी जागीर और तारे सम्बन्धी है
घरवाली को क्या पता पडेगा वो तो अकल से अंधी है
उनका दिल कहता है 'में डाल डाल चहुंकू '
मोर जैसी कला करकर बार बार टहूँकु
'पर वो ऐसा कर नहीं सकते' इसका गम है
पत्नी का जिक्र जरुर है पर बात में दम कम है
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Tribhawan Kaul kavita ke vishay vastu par shayad main aapse sahmat nahi ho sakta but arn't we here to agree to disagree. Kavi ke roop main to aap dhara pravah hai is mein koyi shak nahi, Hasmukh Mehta JI.3 hours ago · Unlike · 1 Hasmukh Mehta KAVI KI DHAARA, SHEETAL JHALDHAARA, THANDAK BHI PAHUNCHAAYE, TABAHI BHI MACHAAYE, PAR DIL DHIRESE KALRAV KARE, SAMAY AANE PAR MOR KI TARAK TAHIK TTAHUK BHI KAAAARE.. SAABHAR KAUL SAHAB ' a few seconds ago · Like