बना के ख़ास...Banaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

बना के ख़ास...Banaa

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बना के ख़ास
गुरुवार, १५ नवम्बर २०१८

मै सोती रही
मन में गुनगुनाती रही
क्या मेरा सोचना है सही?
कोई आ के बताए तो सही!

क्या यही प्यार है?
मेरे दिल के आरपार है
उसमें कुछ ऐसा तो है
जो मेरे दिल को बहुत पसंद है।

अब तो दिन मे भी सपने आते है
रात में भी वो ही चीज़ दिखती है
"अब तो आके मिलो"यही है पुकार
दिल का भी यही है विचार।

जीवन का यही क्रम है
प्यार का फलसफा हम उम्र में अलग होता है
मन को भा जाएतो दिल मचलता रहता है
जब तक नहीं देखो तब तक बेबाकपन रहता है।

जवान दिल की एक ही होती है आस
बस प्यार की ही रहती है प्यास
"कोई मिल तो जाय बुलानेवाला पास "
"और बिठाए दिल में" बनाके ख़ास

Cortesy: Picaso 1932

हसमुख मेहता

बना के ख़ास...Banaa
Thursday, November 15, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 15 November 2018

जवान दिल की एक ही होती है आस बस प्यार की ही रहती है प्यास कोई मिल तो जाय बुलानेवाला पास और बिठाए दिल में बनाके ख़ास Cortesy: Picaso 1932 हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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