बनाना चाह रहा Bananaa Chah Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

बनाना चाह रहा Bananaa Chah

बनाना चाह रहा

तलाश रहा कोई आपको
बना ना चाह रहा आपको
दिल में आप ऐसे बसे है!
महोबत के जाल में अपने आप फंसे है।

आपको मिटा नहीं रहा
बस मन में बसा रहा
आपकी चाहत ही ऐसी है
कल्पना की मूरत ही ऐसी है।

तेरा हुस्न ही ऐसा है
कहने को बहुत खासा है
पर दिल कह नहीं पायेगा
और कह भी दिया तो रह नहीं पायेगा।

तू झुठला नहीं पायेगी
अपने आप खींची चली आएगी
मे तो बेतहाशा देखता रह गया
बस मन ही मन अपना बनाने की शाह में आ गया।

हमारी दीवानगी ही समझो
शान आपकी पर सान में ही समझो
कुछ नहीं बिगड़ेगा दिल को समझाकर
बस खुलकर कहो हां और करो एजहार।

बनाना चाह रहा Bananaa Chah
Thursday, November 24, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 24 November 2016

हमारी दीवानगी ही समझो शान आपकी पर सान में ही समझो कुछ नहीं बिगड़ेगा दिल को समझाकर बस खुलकर कहो हां और करो एजहार।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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