बेहोश हो रहा हो.. Behoshnho Raha Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

बेहोश हो रहा हो.. Behoshnho Raha

बेहोश हो रहा हो

चमक रही थी चांदनी चेहरे पर
रौशनी ही पुर बहार जगह जगह पर
हम तो बोखलाए सुन्न रह गए
न कह पाये सीधे इसलिए खिन्न हो गए।

गालो पे लाली थी गुलाब की तरह
खुश्बू महक रही थी सब तरह
में मदहोश हुए जा रहा था
बस हवा के झोके में नहा रहा था।

पुरे शबाब में था हुस्न
दिल कैः रहा था मनाओ जश्न
मौसम चारो और रंगीला है
दिल मचल रहा मतवाला है।

'मन ने कहा ' आगोश में बाहर लो
हमारी कहानी भी पूरी सुन लो
मन में आये वो कह देना
पर दिल से बाहर न कर देना।

हमें लगा वो परीक्षा ले रहे है
बात को गोर से सुन रहे है
ढूँढ रहे होंगे सही शब्द जवाब देने के लिए
पर देखे बनता था रुआब समझने के लिए।

कुदरत का कमाल तो देखो
उनका रुतबा एक बार और देखो
चाँद जैसे चांदनी का ख्याल रख रहा हो
हमारा मन भी मन मे जैसे बेहोश हो रहा हो।

बेहोश हो रहा हो.. Behoshnho Raha
Friday, March 11, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 12 March 2016

Alpa Negi Mind blowing..jyare pan mara mate poem lakhi chhe tame, just fabulous! ! ! ! Abhar Hasmukh ji... Unlike · Reply · 1 · 3 hrs

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Mehta Hasmukh Amathalal 12 March 2016

Alpa Negi Dhanyawad.. Unlike · Reply · 1 · 3 hrs

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Mehta Hasmukh Amathalal 11 March 2016

welcome alpa negi and shailesh jaiswal Unlike · Reply · 1 · Just now

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 11 March 2016

कुदरत का कमाल तो देखो उनका रुतबा एक बार और देखो चाँद जैसे चांदनी का ख्याल रख रहा हो हमारा मन भी मन मे जैसे बेहोश हो रहा हो।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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