भरोसा बिलकुल उठ गया है Bharosaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

भरोसा बिलकुल उठ गया है Bharosaa

भरोसा बिलकुल उठ गया है

वो रूठ गया है हम लोगों से
बेतुकी बातों से
हमारे दोगले वर्तन से
जूठ बोल ने से ओर बेवफाई वतन से।

अरे भाई क्यों बदनाम करने पर तुले हो?
मेरे नाम पर बट्टा और कालिख क्यों पोतते हो
धर्म के नाम पर झगड़ा और खानाख़राबी करते हो
फिर लोगोके सामने मजहबी बनने की कोशश करते हो।

मैंने कभी नहीं चाहा लोग परेशान हो
भलाइ के बदले एहसान फरामोश हो
सही समय पर खामोश देखते रहते हो
मदद करना तो दूर पर ठहाका मारते रहते हो।

मैंने चर्च में रहना ही छोड़ दिया है
मंदिर में घंट बजवाना ही छोड़ दिया है
मूल्लाजी से कह दिया है बाँग मत पुकारे
यह सब इसीलिए की सच्चे लोग दूर रहे बेचारे।

मुझे थोड़ी सी भनक होती तो भरोसा ना करता
इंसानो को धरती पर कभी नहीं भेजता
उनके भेजे में एक चीज का रोपण जरूर से करता
वो प्यार ही प्यार करता ओर नफरत कभी ना करता।

मेरा वक्त अभी आ गया है
अब भरोसा बिलकुल उठ गया है
ना में चर्च, मंदिर और मस्जिद में रहूंगा
बस सही आदमी के दिल में गाता रहूंगा।

भरोसा बिलकुल उठ गया है Bharosaa
Sunday, December 18, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 18 December 2016

Nasim A Salim God is gone on long leave 🌶 Like · Reply · Just now

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 18 December 2016

welcomemdenama siddiqui Unlike · Reply · 1 · Just now

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 18 December 2016

मेरा वक्त अभी आ गया है अब भरोसा बिलकुल उठ गया है ना में चर्च, मंदिर और मस्जिद में रहूंगा बस सही आदमी के दिल में गाता रहूंगा।

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success