भस्म होते हुए Bhasm Hote Hue Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

भस्म होते हुए Bhasm Hote Hue

भस्म होते हुए

दिल कभी कभी रोता है
ओर हसता भी रहता है
जिंदगी का ये हसीन पल है
जो अव्वल और बेनमून है।

क्यों जिंदगी आपको परखती है?
कभी सख्ती से निपट तो है तो कभी नरमी दिखाती है
आपकी नाड परखकर इम्तेहान भी लेती है
रिश्ते में कभी दरार भी ला देती है।

इसके बावजूद हम गम में डूबते नहीं
बारबार अपना रास्ता बदलते नहीं
सुबह के उझाले का हमेशा इन्तेजार रहता है
रात होने से पहले बस सब इंतेजाम कर देता है।

आंसुओ का बहना दिल को गवारा नहीं
चेहरे पे रात्रि का माहौल कभी संवारा नहीं
हमेशा अपने को आगे जाने की होड़ में रखा
अपने हर पल में सब को बनाया सखा।

दिल ने उड़ना ही चाहा
सब से मिल झुलकर रहना चाहा
उड़ान बहुत आगे हो पर मुड़कर देखना भी चाहा
देखा भस्म होते हुए कल को और स्वाहा भी।

भस्म होते हुए Bhasm Hote Hue
Sunday, November 27, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 27 November 2016

welcome alpa Unlike · Reply · 1 · 27 No

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Mehta Hasmukh Amathalal 27 November 2016

xAlpa Negi Awesome Unlike · Reply · 1 · 49 mins 27 Nov

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Mehta Hasmukh Amathalal 27 November 2016

दिल ने उड़ना ही चाहा सब से मिल झुलकर रहना चाहा उड़ान बहुत आगे हो पर मुड़कर देखना भी चाहा देखा भस्म होते हुए कल को और स्वाहा भी।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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